FILM REVIEW : दर्शकों पर क्या छाप छोड़ेगी, अय्यार की अय्यारी ?....

फिल्म : ‘अय्यारी’
निर्देशक : नीरज पांडे
कलाकार : मनोज वाजपेयी, सिद्धार्थ मल्होत्रा, रकुलप्रीत सिंह, आदिल हुसैन, कुमुद मिश्रा, नसीरुद्दीन शाह।
रेटिंग : 1.5...

डाॅयरेक्टर नीरज पांडे की फिल्म ‘अय्यारी’ आज शुक्रवार को रिलीज की गई। देशभक्ति पर बनी पिछली फिल्मों से ज्यादा प्रभाव नहीं डालेगी दर्शकों पर यह अय्यारी, जिसमें मनोज बाजपेयी और सिद्धार्थ मल्होत्रा लीड रोल में हैं। इनके अलावा फिल्म में रकुल प्रीत सिंह, अनुपम खेर, नसीरुद्दीन शाह सहित अन्य कलाकार भी हैं। फिल्म में मनोज वायपेजी और सिद्धार्थ मल्होत्रा के बीच बेहतरीन डायलॉग्स प्रस्तुति है। बता दें कि ये फिल्म भ्रष्टाचार के ताने-बाने को दर्शाती है। 

‘नाम शबाना’ के बाद मनोज वाजपेयी अय्यार बने हैं, फिल्म ‘अय्यारी’ में। उनके साथ हैं, सिद्धार्थ मल्होत्रा जैसे एक और अय्यार, जिनकी खूबसूरती का कायल कौन नहीं होना चाहेगा। असल में ‘अय्यारी’ का क्या जादू है, डाॅयरेक्टर नीरज पाण्डेय ने इसके माध्यम से क्या दिखाना चाहा है, यह कुछ साफ नहीं हो पाया है। पहली बात तो यह कि यह फिल्म देखने के लिए बहुत ही गंभीर और एकाग्र होने की जरूरत है, नहीं तो शुरू से अंत तक आप यही सोचते रह जाएंगें आखिर फिल्म दिखाना क्या चाहा है। कलाकारों की ऐसी अय्यारी देखने पर दर्शक भी दिग्भ्रमित हो जाएं।


‘अय्यारी’ की कहानी शुरू होती है, मेजर जय बक्शी (सिद्धार्थ मल्होत्रा) की गुमशुदगी के साथ, जो आर्मी के आॅफिस से सीक्रेट डाटा चुराकर लापता हो जाते हैं, उनके पास कुछ ऐसे सबूत होते हैं, जो अगर मीडिया के हाथ लग जाएं, तो सरकार गिरने की नौबत आ जाए। फिर जय को वापस लाने का की ड्यूटी दी जाती है, जय के सीनियर आॅफिसर कर्नल अभय सिंह (मनोज बाजपेयी) को। वहीं मेजर बख्शी को एक हैकर सोनिया गुप्ता (रकुलप्रीत सिंह) मिलती हैं, जो जय के काम में उनका हाथ बंटाते हुए उससे प्रेम करने लगती है। आर्मी का एक रिटायर लेफ्टिनेंट जनरल गुरिंदर सिंह (कुमुद मिश्रा), आर्मी प्रमुख जनरल प्रताप मलिक (विक्रम गोखले) को हथियार बेचने वाली एक विशेष कंपनी से हथियार खरीदने का प्रस्ताव देता है, जिसको वह नामंजूर कर देते हैं, फिर गुरिंदर उनको एक राज खोलने की धमकी देता है, लेकिन बाद में पता लगता है कि गुरिंदर यह धमकी मेजर जय बक्शी के साथ हुई डील के होने पर दे रहा है। फिल्म में मुकेश कपूर (आदिल हुसैन) नामक एक हथियारों का व्यापारी भी है, जो भारतीय सेना से नौकरी छोड़ने वाले जवानों को अपने यहां नौकरी देता है और उनसे सेना के राज इक्कठे करता है, जिससे सेना के सारे प्रमुख डील्स उन्हें मिल जाएं। तभी पता लगता है कि जय ने, अभय के फर्जी साइन करके 22 लोगों के कॉल्स को रिकाॅर्ड करा था। फिर अभय, जय का पीछा करते हुए लंदन आते हैं, जिसके बाद देखते-देखते उलझे हुए सिरों वाली यह कहानी सुलझे बिना ही खत्म हो जाती है, क्योंकि कहानी का कोई निष्कर्ष ही नहीं निकलता और जय यह स्पष्ट भी नहीं कर पाते कि उनके हाथ भला ऐसा क्या लग था। सिर्फ बड़े लोगों का भ्रष्टाचार ही दिखता है। फिल्म में भारतीय सेना प्रमुख तो ईमानदार दिखते हैं, लेकिन यह बिल्कुल पता नहीं चलता कि मेजर बख्शी सेना आॅफिस से डाटा क्यों चुरा कर भागता है। 

कलाकारों के अभिनय की बात करें तो सिद्धार्थ मल्हौत्रा से ज्यादा प्रभावशाली नहीं लगते मनोज वाजपेयी। सिद्धार्थ का आॅवर आॅल लुक आकर्षित करता है। वहीं अभिनेत्री रकुलप्रीत की बात करें तो वे अपने सौंदर्यबोध से खींचती हैं। अगर दोनों के बीच प्यार की बात करें तो वह गायब दिखता है। पूजा चोपड़ा का अभिनय भी ठीक-ठीक लगता है पर सेना में होते हुए ज्यादा प्रभावित नहीं करतीं। बात नसीरूद्दीन के अभिनय की करें तो आज भी उनका व्यक्तित्व उनके रोल में फीट बैठता है। उनके हाव-भाव और एक मिस्ट्री को उजागर करना ज्यादा खास प्रभाव नहीं डालता। फिल्म के दृश्यांकन की बात करें तो दिल्ली के कनाॅट प्लेस, लाल किला, और एयरपोर्ट के साथ ही इजिप्ट के दृश्य शानदार लगने के साथ ही आकर्षित भी करते हैं। 

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